दो खोजी पत्रकारों के बीच संवाद का सबसे आम टॉपिक क्या हो सकता है ?





           

 Deepak Sharma   स्टिंग ऑपरेशन और खोज खबर की तलाश में हम दोनों ने कई दौरे किये.हफ्ते-हफ्ते ..दस-दस दिन के लिए ...ज्यादातर दिल्ली से बहुत दूर. कभी बनारस तो कभी पीलीभीत. कई रातें होटलों के एक कमरे में बिताई . दोनों शाकाहारी और टी टोटलर रहे.. तो अक्सर नींद के इंतज़ार में वक्त किसी न किसी किस्से से शुरू होता था पर बातचीत एक टॉपिक पर ही खत्म होती ...और फिर हम दोनों सो जाते.
जरा गेस करिए दो खोजी पत्रकारों के बीच संवाद का सबसे आम टॉपिक क्या हो सकता है ? शायद आज के दौर में विश्वास न हो पर हम दोनों के बीच सबसे ज्यादा बातचीत "माँ " को लेकर होती थी. दरअसल ख़बरों और सूत्रों के अलावा अक्षय के फोन पर उनकी छोटी बहन और मम्मी ही हमेशा दुसरे सिरे पर रहती थीं. और बात खत्म होने के बात अक्षय अपनी माँ का टॉपिक छेड़ देता.! मुझे काफी देर बाद मालूम हुआ की अक्षय के परिवार में सिर्फ तीन ही लोग थे. माँ, छोटी बहन और अक्षय. और वो इस परिवार का जीविका चलाने वाला एकलौता सदस्य था.!

आज माँ का अस्पताल में टेस्ट है. आज माँ को चश्मा दिलाना है. आज माँ की तबियत ढीली है. आज माँ के लिए गिफ्ट लेकर जाना है . सर आपके आशीर्वाद से माँ को वैष्णोदेवी ले जा रहा हूँ. सर आज माँ ने सब्जी बनाकर दी है.प्लीज़ टेस्ट करिए. सर झूठ नही बोल रहा माँ के हाथों में जादू है. कभी उरद की दाल खिलाता हूँ आपको..मेरी माँ नही थी इसलिए ये किस्से, ये बातें, मेरे दिल को बड़ा सुकून देती थी ...और धीरे धीरे मे खुद माँ के बारे में ही पूछने लगा. एक वजह शायद ये थी कि ये उसका पसंदीदा टॉपिक भी था.!हर मंगलवार को अक्षय को मुझे रात 8 बजे तक फारिग करना होता था.उस दिन अक्षय का व्रत होता था और उसे घर जाकर माँ के हाथों से व्रत तोडना होता था. अगर मे ख़बरों में फंसा हूँ तो वो शाम को ही हिंट दे देता ..सर आज ट्यूसडे है.!
आज दोपहर जब आजतक से शम्स ताहिर खान ने अक्षय के बारे में खबर दी तो कुछ देर मे रियेक्ट ही नही कर सका. शम्स मुझसे अक्षय के घर का पता पूछना चाह रहे थे. शायद वो ये भी चाह रहे थे कि मे उनकी माँ को खबर भी दूं.!मे पीछे हट गया . मुझे लगा दुनिया में मेरे लिए इससे बड़ा पाप कोई और नही हो सकता कि मे अक्षय की मौत की खबर अक्षय की माँ को सुनाऊँ. जब लोग पहुँचने लगे तो मैंने हिम्मत की !देर शाम मैंने अक्षय के घर की सीडियां पहली बार चढ़ी. उसे आपार्टमेंट तक छोड़ने तो मे कई बार गया था पर घर की सीढ़ियाँ कभी नही चढ़ी थीं. मे अक्षय के घर आज पहली बार पहुंचा... सीढ़ी की हर पायदान एक पहाड़ सा था. तीसरे फ्लोर के फ्लैट का जब दरवाज़ा खुला तो बहन मुझे पहचान गयी और दूसरी तरफ माँ बैठी थी. मै माँ से बिना आँख मिलाये ..माँ को बिना देखे दरवाज़े से वापस हो लिया.!ये माँ अब मेरी माँ जैसी ही है ...फर्क सिर्फ इतना है कि मेरी माँ घर की दीवार के फोटो फ्रेम में जड़ी है ...और ये माँ जीते जी आज जड़ चुकी थी.!दीवार पर चस्पा और पलंग पर बैठी इन दोनों माओं में अब कोई फर्क नही है.
दो बातें कहनी है : पहली कि अगर कल दिल्ली में है तो कोशिश करियेगा 1 बजे दोपहर निगमबोध घाट पहुँचने के लिए जहाँ अक्षय के अंतिम दर्शन के लिए आप आ सकते हैं.!और हाँ अक्षय के घर को अब कौन चलाएगा ? इस विषय पर कोई निर्णय लेना होगा.
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