चीन की पीओके में उपस्थिति भारत के लिए नहीं, बल्कि पाकिस्तान के लिए खतरा बनने वाला है। क्यों?



चीन की पीओके में उपस्थिति से भारत को चिंतित होने की जरूरत नहीं। चीन वहां भारत के लिए नहीं, बल्कि पाकिस्तान के लिए खतरा बनने वाला है। क्यों? इसका जवाब है कि चीन के ‍शिनजियांग प्रांत में आतंकवादी घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। इस घटना को अंजाम दे रहा है ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम)। इसको अप्रत्यक्ष रूप से सपोर्ट करने वाले हैं पाकिस्तान के कई आतंकवादी संगठन। चीन यह अच्छी तरह जानता है। ईटीआईएम के सरगनाओं ने पीओके और पाकिस्तान के कबायली इलाकों की सुरक्षित पनाहगाहों में शरण ले रखी है। यहां वे ट्रेनिंग लेते हैं। पीओके और चीन की सीमा से सटे खुंजरेब से आतंकवादी घुसपैठ करते हैं। हालांकि बेहद ठंडे मौसम व कठिन रास्तों के चलते इसे मौत की घाटी भी कहा जाता है। यह अफगानिस्तान को काशगर से जोड़ने वाला एकमात्र रास्ता है।

शिनजियांग की राजधानी काशगर को ईटीआईएम कई बार आतंकी हमलों का निशाना बना चुका है। उइगर मुस्लिम बहुल शिनजियांग प्रांत में बढ़ते हमलों के बीच चीन ने पाकिस्तान को कई बार चेतावनी दी है और पाकिस्तान ने कई उइगर मुसलमानों को वहां से भगाया भी है। अब नई नीति के तहत चीन ने पाकिस्तान व भारत को घेरने की योजना बनाई है जिसके चलते उसने पीओके में घुसकर वहां पर नजर रखना शुरू कर दी है। चीन अब यहां दोहरा खेल, खेलने वाला है। धीरे-धीरे इस क्षे‍त्र में चीन की गतिविधियां जैसे-जैसे बढ़ेंगी पाकिस्तान, कश्मीरी और उइगर मुसलमानों के लिए भी मुश्किलें बढ़ती जाएंगी। हालांकि विश्लेषक यह भी कहते हैं कि पाकिस्तान की शह पर चीन पीओके पर कब्जा करना चाहता है और एक दिन पाकिस्तान पीओके से हट जाएगा।

कश्मीरियों के प्रति पाकिस्तान के दिखावे की पोल तो उस वक्त ही खुल गई थी, जब उसने वहां से कश्मीरियों को प्रताड़ित कर भगाना शुरू कर दिया था। गिलगित और बाल्टिस्तान में लोकतांत्रिक अधिकारों और स्वायत्तता की मांग को लेकर शिया मुसलमानों के आंदोलन को बर्बरता से कुचला गया था। सुन्नी जेहादी संगठन ने पाक सेना के साथ मिलकर उन्हें इस कदर आतंकित किया कि उन्होंने अब भारत में शरण ले रखी है। ऐसे लगभग 12 लाख शिया मुसलमान हैं। पाकिस्तानी सेना, पुलिस और कबायलियों द्वारा मीरपुर, मुजफ्फराबाद, भिंबर, कोटली और देव बटाला जैसे शहरों पर पाकिस्तान के कब्जे के कारण 50 हजार नागरिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी और लाखों लोग विस्थापित होकर शरणार्थी का जीवन जी रहे हैं।

पिछले 60 वर्षों में जहां ‍गैरमुस्लिम और शियाओं को मार-मारकर भगा दिया गया, वहीं वहां रह रहे कश्मीरियों को भी पिछले कुछ वर्षों से भगाया जा रहा है। सच तो यह है कि पाक अधिकृत कश्मीर में अब न कश्मीरी रहते हैं, न वहां कश्मीरी बोली जाती है। वहां बोली जाने वाली भाषाओं में से एक भी भाषा कश्मीरी से नहीं मिलती-जुलती। वहां बोली जाने वाली भाषाएं हैं- पहाड़ी, मीरपुरी, गुज्जरी, हिन्दको, पंजाबी और पश्तो।

China's State-Run News Agency Calls PoK Region 'Pakistan'

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के नाम पर मीरपुर, मुजफ्फराबाद, भिंबर, कोटली और देव बटाला जैसे शहरों के नाम प्रमुखता से लिए जाते हैं। यहीं पर कश्मीरी लोग रहते हैं। उनके बीच पा‍किस्तान के अन्य क्षेत्रों से आए लोग भी रहते हैं जिनकी तादाद बढ़ती जा रही है। उनमें से अधिकतर आतंकवाद की ट्रेनिंग के सिलसिले में आए और यहीं से भारत में घुसपैठ कर कश्मीर में आतंक फैलाने के चलते यहीं बस गए हैं। हाल में हाफिज सईद की गतिविधियां यहां बढ़ गई।यहां के बचे-खुचे कश्मीरियों का दर्द यह है कि जिस देश (पाकिस्तान) और आजादी के लिए उनके समाज के 50 हजार से ज्यादा नागरिकों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए उनकी सरकारें (पाक) आज भी उन्हें वे अधिकार देने को राजी नहीं हैं, जो वे चाहते हैं। वे अपनी मर्जी से जी भी नहीं सकते। उनके लिए जीने की शर्त बस एक ही है- 'भारत के साथ युद्ध करो।'

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पाक अधिकृत कश्मीर के गिलगिट और बाल्टिस्तान में लोग भूख और अभावों से जूझ रहे हैं। वहां आतंक का राज है। इस क्षेत्र के लोगों को मुख्य धारा से भी दूर रखा जाता है। पाकिस्तान यहां के लोगों को भड़काता है कि भारत का काम मुस्लिमों का कत्ल करना है। भारत में मुसलमानों का बेरहमी से कत्ल किया जा रहा है। दरअसल, वहां के लोग पाकिस्तानी टीवी जो बताता है, उस पर विश्वास करते हैं। शिक्षा का बुरा हाल है। स्कूलों में धर्म के बारे में पढ़ाने का दबाव बना रहता है। छात्रों को जेल में डाल दिया जाता है और स्कूलों में फायरिंग कराई जाती है। 17 फीसदी स्कूल ही बचे हैं। जो कोई अब आजादी की आवाज उठाता है या अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ता है, उसे उम्रकैद दे दी जाती है। अब कश्मीर की आजादी की बात करना जुर्म है इसीलिए अब भारत के कश्मीर के अलगाववादियों के भी सुर बदलने लगे हैं।
             Map of Azad Jammu and Kashmir

12 लाख मुस्लिमों ने भारत में ले रखी है शरण : बेरोजगारी, गरीबी, जहालत चारों तरफ पसरी हुई है। रोज जुल्म-पर-जुल्म हो रहे हैं। इस जुल्म, गरीबी और बेरोजगारी के चलते कई कश्मीरियों ने भारत में शरण ले रखी है तो कई दूसरे मुल्क में निर्वासित जीवन जी रहे हैं। पाकिस्तानी कबीलों के बर्बर हमले, कत्लेआम और जुल्मो-सितम से बचकर मुजफ्फराबाद, मीरपुर और पुंछ आदि से भागे अल्पसंख्यकों की तीसरी पीढ़ी भी दर-ब-दर ठोकर खा रही है। इन्हें शरणार्थी, विस्थापित, आंतरिक रूप से विस्थापित या पलायित में किस श्रेणी में रखा जाए? इसे लेकर 67 वर्षों बाद भी भ्रम बना हुआ है। पीओके पर तो यथास्थिति बनी हुई है, लेकिन वहां से भागे करीब 12 लाख विस्थापितों की स्थिति बद से बदतर हो गई।

27 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय होने के बावजूद तत्कालीन सरकार आततायी कबीलों से उनकी रक्षा नहीं कर सकी। वहां मची मार-काट और खून-खराबे का आलम यह था कि अकेले मीरपुर जिले में एक दिन में 12 हजार से ज्यादा शिया अल्पसंख्यक मार दिए गए।भूखे-प्यासे, अधनंगे बचे खुचे लोग किसी तरह जान बचाकर भागे। कई ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। विस्थापितों के संगठन एसओएस इंटरनेशनल ने प्रधानमंत्री मोदी के कार्यालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह को हाल में सौंपे ज्ञापन में उनकी समस्या के हल के लिए विकास बोर्ड गठित करने, कश्मीरी पंडितों की तर्ज पर उनके लिए उपनगर विकसित करने, संपत्ति का मुआवजा देने तथा बेरोजगार युवकों को विशेष पैकेज देने की मांग की है।अपनी चल-अचल संपत्ति छोड़कर बदहवासी में भागे इन लोगों ने सरकारी विभागों के दिलासे पर कई वर्ष इस उम्मीद में काट दिए कि जल्द ही पीओके पर भारत का कब्जा होगा और वे अपने घर जाएंगे।  



सौरभ भारद्वाज ·