मैं जानता हूँ कि धर्म क्या है परन्तु उसमें मेरी प्रवृत्ति नहीं है।


                      


Malay Dwivedi मैं जानता हूँ कि धर्म क्या है परन्तु उसमें मेरी प्रवृत्ति नहीं है। मैं यह भी जानता हूँ कि अधर्म क्या है परंतु 
उससे मुझे निवृत्ति नहीं है। मेरे हृदय में स्थित देवता मुझे जिस ओर ले जाना चाहता है मै उधर ही चलता जाता हूँ।
जानामि धर्मं न च मे प्रवृत्ति: ,जानाम्यधर्मं न च मे निवृत्ति:


Anand Tiwary लेकिन यह अहंकार दूर कर पाना दुष्कर कार्य है ! अहंकार दूर होते ही व्यक्ति सच्चा संत महात्मा या कहा जाये 
तो देवत्व पा जाता है ! और बड़े बड़े संत कहलाने वाले मनुष्यों के पास यह और भी अधिक देखने में आता है ! समभाव रखने वाले 
संत तो इसी लिये अपनी प्रसिद्धि से दूर रहते है !


Pawan Kumar Gupta : इंसान को अपने किये हुए कर्मो पे पूर्ण भरोसा होना चाहिए की वो जो कर रहा ह उससे उसको या किसी समाज के वक्ती को नुकसान तो नहीं हो रहा ह,यदि नहीं तो आपके किये कर्म श्रेस्ट अनयथा गलत । यदि कर्म सही नहीं तो उसका भुगतान आपको सहना पड़ेगा।गीता भी यही उपदेश देती ह इंसान सुख व् दुःख पाता ह अपने कर्मो के हिसाब से।