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केजरीवाल किसी भी तरह जनमत के बहाने असंतोष की आग को कश्मीर से लेकर , उत्तर - पूर्व तक भड़काना चाहता है|


केजरीवाल क्यों देश के दुश्मनों को मदद पहुंचाना चाहते हैं? : ग्रीस में जनमत संग्रह के चंद घंटे के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को दिल्ली में अपनी राजनीति चमकाने के लिए नया आइडिया मिल गया है. ग्रीस में जनमत संग्रह हो सकता है तो क्यों नहीं दिल्ली में यह संभव है लेकिन केजरीवाल देश की संवैधानिक सीमाओं से वाकिफ होते हुए भी वह राजनीति करने से बाज नहीं आ रहें हैं.

दरअसल अरविंद केजरीवाल को मालूम है कि इस जनमत संग्रह से कुछ नहीं हासिल होने वाला है लेकिन दिल्ली और देश की राजनीति में अपनी अहमियत साबित करने के लिए उनका बड़ा कदम है. इस खेल में वह पास भी हो सकते हैं और फेल होने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है. सबसे बड़ा सवाल यहा है कि देश में अभी तक कहीं पर जनमत संग्रह नहीं हुआ है न ही इसका प्रावधान संविधान में है तो क्या उनका यह कदम असंवैधानिक होगा. अगर वह दिल्ली में जनमत संग्रह कराना चाहते हैं तो क्या जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह का समर्थन करेंगे. पाकिस्तान इसे मुद्दा बनाकर भारत को घेरने की कोशिश कर सकता है कि दिल्ली में जब जनमत संग्रह हो सकता है तो जम्मू-कश्मीर में क्यों नहीं.

तीसरी बात ये है कि जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी ताकतें केजरीवाल की चाल पर चलते हुए मांग कर सकती है कि वो लोग भी जनता के बीच जनमत संग्रह कराना चाहते हैं कि जम्मू-कश्मीर की जनता भारत में रहना चाहती है या पाकिस्तान में. अगर जनमत संग्रह की आग जम्मू-कश्मीर में फैलती है तो केजरीवाल बुरी तरह फंस सकते हैं और देश के लिए भी मुश्किलें पैदा हो सकती हैं.

क्यों केजरीवाल को जनमत संग्रह में संजीवनी दिख रही है ? : अरविंद केजरीवाल राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं. उनकी फितरत है कि वह अपनी हर चाल में हार नहीं जीत चाहते हैं. अपने ही तरीकों से चीजों को पेश करते हैं और अपने ही तरीकों से खारिज कर देते हैं. 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था तब उन्होंने कांग्रेस से समर्थन लेने के मुद्दे पर दिल्ली में 250 जगहों पर जनमत संग्रह की नौटंकी की थी. जाहिर है उन्होंने 250 जगहों पर सभा करके जनमत संग्रह का नाटक किया था. उस सभा में ज्यादातर लोग केजरीवाल के समर्थक थे . जनमत संग्रह का तरीका भी अनोखा था हाथ उठाकर केजरीवाल के जनमत संग्रह का समर्थन करना था . खैर दिल्ली में केजरीवाल की सरकार कांग्रेस के समर्थन से बन गई लेकिन जब वह दिल्ली के मुख्यमंत्री का पद छोड़ रहे थे तब जनमत संग्रह कराने का फैसला नहीं किया .

दरअसल दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त नहीं है और इसकी वजह से केन्द्र सरकार और राज्य सरकार में अक्सर टक्कर होती है . विधानसभा में सात बार प्रस्ताव पारित हो चुके हैं, लेकिन हर बार उपराज्यपाल (एलजी) ने लौटा दिया. आखिरी बार 2010 में इसकी कोशिश हुई थी लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. सिर्फ विधानसभा से पास हो जाने से दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिल सकता है. पहले लेफ्टिनेंट गवर्नर की मुहर की जरूरत होती है उसके बाद संसद में पास कराना होता है. संसद में आम आदमी पार्टी के सिर्फ चार सदस्य हैं. ऐसे में जनमत संग्रह के जरिए केजरीवाल केन्द्र की सरकार पर दवाब बनाना चाहते हैं.

पूर्ण राज्य से दिल्ली को क्या फायदा होगा? : अगर जनमत संग्रह के खेल में अरविंद केजरीवाल सफल हो जाते हैं तो भी केन्द्र सरकार की तरफ से हरी झंडी मिलने की गुंजाईश बहुत कम है. अगर दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलता है तो केन्द्र और दिल्ली सरकार में झिकझिकबाजी बंद हो सकती है. दिल्ली सरकार को खुलकर काम करने का मौका मिलेगा, दिल्ली पुलिस दिल्ली सरकार के अधीन हो जाएगी, डीडीए भी दिल्ली सरकार के अधीन होगा जिसमें जमीन आवंटित करने का अधिकार भी होगा और एमसीडी भी दिल्ली सरकार के अधीन होगा.

यही नहीं राष्ट्रपति भवन, संसद, केंद्र सरकार के तमाम प्रतिष्ठान दिल्ली सरकार के अंतर्गत हो जाएंगे लेकिन ऐसा होने से केन्द्र सरकार के लिए मुश्किलें पैदा हो सकती है. ऐसे में कभी भी दिल्ली सरकार केन्द्र सरकार के लिए अड़चनें पैदा कर सकती है. मसलन स्वतंत्रता दिवस पर लालकिला से झंडा फहराने और 26 जनवरी को इंडिया गेट से पैरेड के लिए भी दिल्ली सरकार से इजाजत लेनी पड़ेगी. राजनयिक को दिल्ली आने, उनकी सुरक्षा व्यवस्था के लिए दिल्ली सरकार से इजाजत लेनी पडेगी. ऐसे में केन्द्र सरकार अपने पैर पर कभी कुल्हाड़ी मारने का काम नहीं करेगी. हालांकि जनमत संग्रह के जरिए केजरीवाल को दिल्ली की जनता की सहानूभूति मिल सकती है. वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान, अलगाववादी ताकतें और देश में दूसरे राज्य भी अरविंद केजरीवाल के जनमत संग्रह की ढाल पर देश की एकता और अखंडता पर सवाल पैदा कर सकते हैं.


                            


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असल मुद्दा दिल्ली में जनमत का नहीं हैं , केजरीवाल किसी भी तरह जनमत संग्रह की शुरुआत करके इस जनमत की आग को कश्मीर से लेकर , उत्तर - पूर्व तक असंतोष की आग को भड़काना है| यूं ही पकिस्तान में घी के दिए नहीं जलाये गए थे युगपुरुष केजरीवाल की जीत पर |


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दिल्ली देश की राजधानी है और किसी भी देश की राजधानी राज्य नही होती है।अगर दिल्ली को राज्य बना दिया तो यहाँ सारी दुनियां के जो राजदूत, उनकी टीम, भारत के प्रधानमन्त्री, राष्ट्रपति, संसद और सांसदों जैसे महत्वपूर्ण लोगो और संस्थानों की सुरक्षा व्यवस्था कौन करेगा।देश की राजधानी में रोज़ अनेक महत्वपूर्ण विदेशी मेहमान आते है क्या उनकी सुरक्षा भी राज्य सरकार को दे सकते है।इन सब के अलावा जो सुविधाये दिल्ली को UT होने के कारण मिलती है वो भी बन्द हो जाएंगी।...........Sanjay Dwivedy