मुंबई निवासी जुबैर अहमद खान के उद्गार : ‘मैं समाज के सामने मुस्लिमों की सच्ची तस्वीर पेश करूंगा..आइएस उनको धोखा नहीं देता, जो मजहब के नाम पर उसकी मदद करते हैं,’ यह सीरिया-इराक में रक्तपात मचा कर पूरी दुनिया में खिलाफत लाने के लिए जिहाद कर रहे बर्बर आतंकी संगठन ‘आइएस’ का प्रवक्ता बनने की चाहत रखने वाले मुंबई निवासी जुबैर अहमद खान के उद्गार हैं। जुबैर अहमद खान ‘जर्नलिस्ट फॉर इंटरनेशनल पीस’ का संपादक है। याकूब मेमन को ‘शहीद’ बताने वाले इस पत्रकार ने फेसबुक पर आइएस प्रमुख बगदादी से उसका प्रवक्ता बनने की इच्छा जताई है। इसके लिए उसने भारतीय नागरिकता छोड़ने का भी इरादा व्यक्त किया है। इराक जाने की संभावनाएं तलाशने दिल्ली स्थित इराकी दूतावास आया यह व्यक्ति अब पुलिस की गिरफ्त में है। जुबैर पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन विषय में स्नातकोत्तर है। उसके पास पत्रकारिता और जनसंचार की भी डिग्री है। उसकी पत्नी सरकारी स्कूल में शिक्षिका है, अर्थात मध्यम श्रेणी का एक पढ़ा-लिखा परिवार, किंतु मानस?
अब अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखें। बार्सिलोना में आयोजित आतंकरोधी कांफ्रेंस में इंटरपोल के प्रमुख ने बताया है कि इराक-सीरिया में आइएस के लिए लड़ने वालों में करीब 4,000 से अधिक विदेशी हैं। इनमें से हर चार में से एक ब्रिटिश नागरिक है। यूरोपीय संघ के आतंक प्रतिरोधी दस्ते के समन्वयक गिल्स डि केरचोव के अनुसार यूरोप के युवा मुसलमानों का अन्यत्र जाकर मजहब के नाम पर लड़ाई लड़ना दशकों पुरानी परंपरा है। किंतु वर्तमान में इसमें तेजी से वृद्धि हुई है। सीरियाई विद्रोहियों के साथ मिलकर जिहाद कर रहे विदेशियों की संख्या करीब 12,000 है, जिनमें 2,000 से अधिक जर्मन नागरिक हैं। ब्रिटिश सेना में जितनी मुस्लिम महिलाएं भर्ती हैं, उससे कई गुना आइएस के लिए सीरिया-इराक में बंदूक थामे खड़ी हैं। यूरोप, अमेरिका, आस्ट्रेलिया आदि के आधुनिक माहौल में पले-बढ़े और आधुनिक शिक्षा प्राप्त सैकड़ों युवा आइएस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मजहब के नाम पर मरने-मारने पर आमादा हैं। क्यों?

अपने सैकड़ों ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स और 46,000 से अधिक ट्विटर खातों के माध्यम से आइएस मुस्लिम युवाओं से ‘हिजरा’ करने की अपील कर रहा है। डॉक्टर, नर्स, टेक्नोक्रेट, एकाउंटेंट, इंजीनियर, पत्रकार आदि की सेवाएं देने के लिए दुनिया के करीब 90 देशों के मुस्लिम युवा इराक-सीरिया को हिजरा कर रहे हैं। किंग्स कॉलेज, लंदन के रिसर्च सेंटर के अनुसार प्रति माह करीब एक हजार विदेशी जिहादी आइएस के साथ जुड़ रहे हैं।अलकायदा के सह संस्थापक और आधुनिक जिहादी आंदोलन के पितामह अब्दुल्ला आजम के अनुसार ‘भय की भूमि से सुरक्षा की भूमि की ओर उत्प्रवासन हिजरा है।’ दुनिया के विकसित देशों के आधुनिक और उदार माहौल में शिक्षित-दीक्षित इन युवाओं को अपने देश में किस बात का और किससे भय है? फिर हिजरा कर वे इराक-सीरिया में अल्पसंख्यकों और बंधकों का बर्बरतापूर्वक सफाया क्यों कर रहे हैं? यजीदी महिलाओं और छोटी बच्चियों से बर्बर सामूहिक दुष्कर्म कर वे किस मजहबी दायित्व को पूरा कर रहे हैं? इस रक्तपात और क्रूरता की प्रेरणा उन्हें कहां से मिल रही है?
सेक्युलरिस्ट मजहबी कट्टरवाद और जिहादी आतंक को मुट्ठी भर भटके युवाओं की करतूत बताते हैं। गरीबी, अशिक्षा, सुविधाओं की कमी, राजनीतिक अस्पृश्यता, ऐतिहासिक अन्याय आदि कुतर्को से जिहाद के नंगे सच को ढकने की कोशिश की जाती है जबकि यथार्थ इससे कोसों दूर है। अमेरिका के वल्र्ड ट्रेड टॉवर पर हवाई हमला करने वाले सभी कसूरवार उच्च शिक्षा प्राप्त और संभ्रांत परिवार से थे। लंदन पर आत्मघाती हमला करने वाले फिदायीन ब्रिटेन के आधुनिक उदार समाज में पले-बढ़े। जिहादी आतंकियों का आदर्श ओसामा सऊदी अरब के सबसे अमीर घरानों में से एक का वारिस था। लादेन का दायां हाथ जवाहिरी मिस्न के कैरो में जान बचाने वाला एक डॉक्टर था। दुनिया को खिलाफत के नीचे लाने का खम ठोकने वाले आइएस प्रमुख बगदादी ने इस्लामी शिक्षा में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की है। दुनिया भर में आतंकवाद की जितनी भी बड़ी घटनाएं घटी हैं, उन्हें अंजाम देने वालों में अधिकांश डॉक्टर, इंजीनियर, आर्किटेक्ट आदि हैं। क्या शिक्षा का अभाव और गरीबी ही जिहाद के जहर को पैदा कर रहा है?
आतंकवाद निरोधी विशेषज्ञ मैग्नस रनस्टोर्प के अनुसार चिंता की सबसे बड़ी बात यह है कि आइएस को अब चारों ओर से धन उपलब्ध हो रहा है। अलकायदा के चरम पर रहते वक्त उसके पास जितना धन-संसाधन था, आज आइएस के पास उसका पचास गुना अधिक है। वह सोशल मीडिया से दुनिया भर में फैले मुस्लिम समुदाय तक अपनी पहुंच बना रहा है। जम्मू-कश्मीर में आए दिन आइएस का झंडा लहराने वाले मुस्लिम युवा भी इंटरनेट पर उपलब्ध आइएस के वीडियो से प्रभावित हैं। वे ऐसे वीडियो के प्रति सहज आकर्षित हो रहे हैं, क्योंकि उनके अंदर वह मजहबी जुनून पहले से ही विद्यमान है, जो काफिर और कुफ्र की अवधारणा से विषाक्त है। जुलाई, 2014 में आइएस के अल हयात मीडिया सेंटर से 11 मिनट का एक वीडियो जारी किया गया था। यह चरमपंथी विष प्रचार का नायाब नमूना है। इसमें कनाडा के लड़ाकू आंद्रे पोलिन का यशगान है। आंद्रे को आइएस ने अबू मुस्लिम का नया नाम दिया था। वीडियो में अबू कहता है, ‘मैं अराजक नहीं हूं। मेरे पास पैसा था, खुशहाल परिवार था, ढेर सारे अच्छे मित्र थे। किंतु एक ‘काफिर’ देश में मैं रहना नहीं चाहता था। क्यों मैं टैक्स भरूं, जिसका उपयोग इस्लाम के खिलाफ होगा।’ यह जहर कौन भरता है?
                       
 
मै बड़े अश्मंजश में हूँ कि मुस्लिम धरम को आतंकवादी कहूँ या मुस्लिम कौम को आतंकवादी कहूँ या क्या कहूँ ?

कनाडा विश्व के उन देशों में से एक है, जहां उत्प्रवासन की दर सबसे अधिक है। कनाडा में ईसाइयत के बाद इस्लाम दूसरा बड़ा मजहब है। एक प्रजातांत्रिक गणराज्य में उन्हें भी अन्य नागरिकों की तरह समान अधिकार प्राप्त हैं। कनाडा की कुल आबादी में मुस्लिमों का अनुपात 3.2 प्रतिशत है, जबकि ग्रेटर टोरंटो क्षेत्र में उनकी आबादी 7.7 प्रतिशत है। सुन्नी इस्लाम को मानने वाले मुस्लिम बहुसंख्या में हैं। यहां प्रजनन दर देखें तो प्रति ईसाई महिला जहां 1.6 प्रतिशत हैं, वहीं मुस्लिमों में यह दर 2.4 प्रतिशत है। कनाडा के चार्टर ऑफ राइट्स एंड फ्रीडम्स के अनुच्छेद 2ए के अंतर्गत मुस्लिम महिलाओं को विद्यालयों या कार्यस्थलों पर हिजाब पहनने तक की छूट है। ऐसे सहिष्णु माहौल में कैसा भेदभाव? इसके विपरीत सऊदी अरब में अल्पसंख्यकों की निजी आस्था और मान्यताओं पर कड़ा पहरा है। आतंक सभ्य समाज के लिए अभिशाप है, किंतु स्वाभाविक सवाल है कि वह कौन-सा मजहबी खाद है, जो आतंकवाद की विषबेल को पनपने के लिए उपजाऊ भूमि उपलब्ध कराती है?
 
Nageshwar Singh Baghel : इस तरह के तस्वीरें ''कुछ मुसलमानों के प्रति बहुत कुछ सोचने'' के लिए मजबूर कर देती हैं !
सादर नमन करता हूँ इन मुस्लिम भाइयों को !
Ranjan Kumar :  मदरसे में तालीम हासिल करके ये बच्चा" जिहादी" बनेगा, ऐसी तालीम के इक्षुक बच्चे जल्द से जल्द
दाखिला ले और हिंदुस्तान में "जिहादी " बच्चों की संख्या में इज़ाफ़ा करे, हिंदुस्तान में सेकुलर कुत्ते ज्यादा हो गए है
उनको जल्दी जल्दी निपटाओ । सभी सरकारो से अनुरोध है और मदरसा खोले खूब सारा जिहादियो का उत्पादन करे ।
दाखिला ले और हिंदुस्तान में "जिहादी " बच्चों की संख्या में इज़ाफ़ा करे, हिंदुस्तान में सेकुलर कुत्ते ज्यादा हो गए है
उनको जल्दी जल्दी निपटाओ । सभी सरकारो से अनुरोध है और मदरसा खोले खूब सारा जिहादियो का उत्पादन करे ।