नीतीश के डीएनए की खोट के कारण ही वे बार-बार पलटी मार देते हैं भविष्य में निश्चित रुप से लालू का साथ छोड़ेंगे l





जेपी आन्दोलन से कांग्रेस का विरोध करके नेता बने लालू और नीतीश आज सत्ता की लालच मे उसी कांग्रेस के साथ आ खड़े हुये है, दूसरी तरफ अन्ना आंदोलन से निकले केजरीवाल ईमानदारी का ढोंग करके और सत्यवादी होने का ढोंग करके चारा चोर और 15 साल बिहार को लुटने वाले लालू का समर्थन कर चुके हैं । बिहार की जनता को बहुत सावधानी से अपना मत देना होगा |

चंदन कुमार - में अपना डीएनए सॅंपल दिल्ली भेज रहा हु, आप भी भेज दे lभुजंग प्रसाद - अरे नाही, कही इसमे चारा का अंश आ गया तो ?

नीतीश कुमार के डीएनए अर्थात उनकी सोच में गड़बड़ है। वे अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकते हैं। अपनी सोच को बिहार की सोच बता रहे हैं, जबकि उनकी सोच से बिहार की जनता इतफाक नहीं रखती। डीएनए का पासा फैंक कर वे बतंगड़ और प्रंपच की केजरीवाल-राहुल की राजनीतिक शैली का अनुशरण कर रहे हैं। इस शैली से केजरीवाल को आंशिक सफलत मिली है, किन्तु राहुल को जनता ने फैल कर दिया है। क्या नीतीश भी बिहार के राहुल बनना चाहते हैं ? यदि ऐसा हुआ, तो फिर उन्हें भी सत्ता खोने के बाद बिहार की सड़को पर पागलों की तरह भटकना होगा। बकवास करनी होगी। जनता के उपहास का पात्र बनना होगा। सम्भवत: नीतीश की गंदी सोच का ऐसा ही दुखद परिणाम होगा।

नीतीश की सोच में गड़बड़ है, इसके कर्इ उदाहरण है। मसलन लालू को चारा घोटालें के अपराध में जेल भिजवाने के लिए उन्होंने पूरी ताकत लगा दी। लालू को बचाने में कांग्रेस ने पूरी कोशिश की, जिससे वर्षों तक मामला न्यायालयों में रेंगता रहा। यह भारतीय राजनीति का मजाक ही है कि आज आरोप लगाने वाले, अपराधी और अपराधी को बचाने वाले एक साथ मिल कर सियासी शंतरज की चाले चल रहे हैं। खुदा न करें मतदान की तिथि के पहले ही लालू की जमानत की अर्जी खारिज हो जाय और उन्हें फिर जेल जाना पड़े। ऐसी स्थिति में चुनावी ढोल बजते ही मातम पसर जायेगा। नीतीश और लालू मन ही मन एक दूसरे को कोसेंगे, पर गले मिल कर रोयेंगें। कांग्रेस सड़को पर दहाड़ेगी । यदि ऐसा होगा तो क्या यह नीतीश कुमार की गंदी सोच का परिणाम नहीं होगा ? उन्हें सत्ता पाने के लिए एक अपराधी को गले लगाने की कहां आवश्यकता थी ? कांग्रेस जो देश का विकास अवरुद्ध करने के लिए एक खल पात्र के रुप में उभरी है, जिसे पूरे देश के साथ बिहार ने भी अस्वीकार कर दिया है, उसके साथ सहयोग करने की कहां आवश्यकता है ?

नीतीश के डीएनए अर्थात उनकी सोच में गड़बड़ के कारण ही उन्होंने राजग छोड़ दिया, जिसके साथ मिल कर उन्होंने सत्ता सुख का लुत्फ उठाया था। क्या उन्हें इस बात का अहसास नहीं है कि यदि उन्हें बीजेपी का साथ नहीं मिलता, तो वे कभी बिहार को जंगल राज से मुक्त नहीं करा पाते। बिहार के मुख्यमंत्री नहीं बन पाते और बिहार को सुशासन नहीं दे पाते। आज वे जिस शिखर पर खड़ें हैं, वहां अपने बल पर नहीं, बीजेपी के सहयोग से पहुंचे हैं। जबकि उनकी औकात तो बिहार में खाली दो सांसद जीता कर लोकसभा में भेजने की ही है। क्या वे बिहार में लालू और कांगे्रस के सहयोग से वही अपनी पूरानी हैसियत पा लेंगे ?

नीतीश की विकृत सोच के कारण ही उन्होंने लोकसभा में पार्टी की अपमानजनक पराजय के बाद मुख्यमंत्री पद से स्तीफा दे दिया और मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया, जो कि दरअसल बिहार के महादलित वोटों का दिल जीतने के लिए तुरुप की एक चाल थी। अपने डीएनए की विकृति के कारण ही मांझी को मुख्यमंत्री आवास के बगीचे के आम नहीं खाने दिये। आम के वृक्षों पर पहरे लगा दिये। ऐसा इसलिए किया, क्योंकि मांझी ने उनका रिमोट बनने से इंकार कर दिया था। जब उन्हें जबरन हटाना चाहा तो विद्रोही हो गये। विद्रोही होते ही मांझी नीतीश के दुश्मन बन गये।

नीतीश के डीएनए की खोट के कारण ही वे बार-बार पलटी मार देते हैं और उसी सीढ़ी को ठोकर मारते हैं, जिसके सहारे वे ऊपर चढ़े थे। अब यदि अपने डीएनए अर्थात अपनी गंदी सोच और विचारधार को पूरे बिहार की सोच बता रहे हैं, तो यह बिहार की जनता को मूर्ख बनाने की धूर्त कोशिश है। भविष्य में निश्चित रुप से लालू का साथ छोड़ेंगे, क्योंकि उनकी सोच में विकृति है। दो धूर्त व्यक्तियों में आत्मीयता एक दिखावा होता है। ऐसे लोग मतलब निकल जाने के बाद स्वत: ही दूर-दूर हो जाते हैं। बिहार की जनता नीतीश को सबक सीखा देगी, तो उनके डीएनए की असली जांच हो जायेगी। अपने डीएनए को वे पूरे बिहार का डीएनए बता रहें, उस सियासी चाल का पासा भी उलटा पड़ जायेगा।  IPS Kiran Bedi