Gyanendra Jha Gyan कहतें हें कि बिहार की राजनीति की अध्ययन करने वाले इस बात से भली भाँति वाकिफ होंगे कि बिहार राष्ट्रिय राजनीती की प्रयोगशाला के साथ-साथ सामाजिक न्याय और भारतीय राष्ट्रवाद की तार्किक चेतना की जमीन रही है l मुझे पता चला कि इसी बिहार में 1962 में भाकपा राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी थी,जिसे 1967 में भारतीय जनसंघ और संसोपा ने निचे पटक दिया. संसोपा के समाजवादी चिन्तक राम मनोहर लोहिया का कहना था की अगर राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ जैसा अनुशाषित और राष्ट्रवाद के लिए प्रतिबद्ध संगठन उनके पास हो तो केवल पांच साल के भीतर भारत में पूर्ण समाजवाद ला सकते हैं.यह डॉ लोहिया का उस राष्ट्रवाद को नमन था,जो संघ के प्रत्येक स्वयंसेवक की नसों में दौड़ता है.मगर लोहिया का समाजवाद कभी भी राष्ट्र की चिंतावों से ऊपर नहीं आ सका.यही वजह रही कि अपने राजनितिक जीवन की शुरुवात में ही ब्रिटिश कल के दौरान डॉ लोहिया ने शिवाजी महाराज को तत्कालीन इतिहास में छापामार लुटेरा कहे जाने पर घोर आपत्ति की थी और उन्हें स्वराष्ट्र और स्वशाशन का महानायक बताकर राष्ट्र पुरुष की संज्ञा दिया था.लेकिन इस देश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि डॉ लोहिया के समाजवाद को 90 के दशक में उनके चेले चपाटो ने जातिवाद और परिवारवाद में बाँट लिया और भारत की राजनीती को कबायली स्वरुप देने की ठान लिया.
अगर हम गौर से विश्लेषण करें तो ये बिहार की उस महान जनता का अपमान था ,जो मधु लिमये और जोर्ज फर्नांडिस जैसे समाजवादी नेतावों को भारी बहुमत से लोकसभा में भेजती रही .मगर 1989 के चुनावों में बोफोर्स टॉप दलाली कांड के राजनीती के केंद्र में आने पर छपन भोगी जनता दल को विपि सिंह ने तैयार किया,जिसकी कागज की नाव पर सवार होकर कई एइसे सुरमा लोकसभा पहुँच गए जिनका सड़क छाप लठैती राजनीती से ही मतलब रहा था .गुस्ताखी माफ़ हो, लेकिन लालू यादव एइसे नेतावों के रहनुमा थे,जिनको ताऊ देवीलाल ने बिहार के मुख्यमन्य्त्री के तौर पे चुनकर मुलायम जैसे रुतबेदार नेता को भी सन्न कर दिया.इसके बाद तो बिहार में जातिवाद की एईसी जहरीले वातावरण का निर्माण किया गया, जिसकी वजह से इस राज्य की महान जनता को हंसी का पात्र बना दिया गया.बिहार का नाम आते ही लोगो के जेहेन में भुखमरी,लूट,बलात्कार,हत्या,अपहरण,जातीय सेना .फिरौती जैसे कई पर्यायवाची शब्द याद आने लगते थे.चारा घोटाला में सजा मिलने के बाद लालू यादव जेल जाते ही अपनी राजगद्दी अपनी मोहतरमा राबड़ी देवी जी को सौंप दिया ,मगर बिहार की जागरूक जनता ने 2005 में भाजपा और नितीश को सुराज के नाम पर वोट दिया और लालू के कुशासन को उखाड़ फेंका.
2010 में तो बिहार की जनता ने कमाल ही कर दिया और लालू यादव को उनके जंगलराज की एईसी सजा दी कि उनके होश ठिकाने आ गए.लेकिन नितीश कुमार भी किस ग़लतफ़हमी में आ गये कि बिहार उनकी खानदानी संपत्ति है ,और नरेन्द्र मोदी से जलन के कारण उन्होंने भाजपा से अपना साथ तोड़ लिया और बिहार की जनता को उसी लालू यादव के जंगलराज वाले दिनों की ओर धकेल दिया,जिसमे बिहार कई वर्षों तक रोता रहा था.आज भी बिहार की जनता लालू -नितीश के महाठगबंधन की शिकार हुयी चुपचाप बेबस होकर विकास की राह की बाट ताक रही है.बिहार की जनता ने लोकसभा चुनाव में फिर इनसे बदला लिया और दोनों की हेकड़ी ही हल कर दिया.अपनी सियासी जमीन बचाने की लालच में नितीश ने लालू के साथ मिलकर महादलित मुख्यमंत्री जीतनराम को अपमानित कर बाहर निकाला और खुद सत्ता की मलाई की खातिर गद्दि पे आसीन हुए.
लालू यादव तो सर्कसी राजनीती के महान खिलाडी हैं ही ..इन्होने दुबारा बिहार की जनता को बरगलाना फुसलाना शुरू किया हुवा है,इसमें नितीश भी इनके झांसे में आ ही गए है और कांग्रेस को लालू जी के तलवे चाटने को हर पल तैयार रहती है.लेकिन नितीश-लालू दोनों कान खोल कर सुन लें, इस बिहार की जनता ने विकास के नाम पे आप दोनों से काफी चोट खाया है.देश और राज्य की बदल चुकी राजनीती में आपलोगों का जातिवादी समीकरण काम नहीं करने वाला.कांग्रेस और अन्य दलों के साथ मिलकर बिहार की जनता को आपस में उलझाकर अपनी नेतागिरी की दुकान को चमकाना बंद कर दीजिये.क्यूकि बिहार की जनता राष्ट्रवादी सोच के समतावादी सिद्धांत को समझ चुकी है.आगे का शासन हर बिहारियों का ही होगा , न की लालू जी आपके परिवार के ही आपके बेटे तपस्वी,बेटी मिसा या फिर इशरत के अब्बू नितीश जी l
आपका....ज्ञानेंद्र झा

