
क्या आप जानते है ऎसे वीर को जिसने अपने देश के लिए हँसते हँसते जान दे दी । मेजर शैतान सिंह राणा किस तरह अपने 114 जवानों के साथ रिजांग ला पर 2 हजार से ज्यादा चीनी सैनिकों से लड़े, किस तरह नंवबर-दिसंबर की हाड़ गला देने वाली ठंड में भारतीय सैनिकों ने काम चलाऊ जूते और खस्ताहाल जैकेट पहनकर चीनी सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए |
उसको सोचकर भी दिल दहल जाता है. ये वही मेजर शैतान सिंह राणा थे, जिन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू के रिश्तेदार और सेना की उत्तर पूर्वी ब्रिगेड के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बी एम कौल का लड़ाई से पीछे हटने का आदेश ठुकरा दिया था ।
अंतिम दम तक लड़े और जब गोलियों से छलनी हो गए तब उनके दो साथी जवानों ने कहा सर आपको मेडकल यूनिट तक भेज देते हैं । मेजर शैतान सिंह राणा ने कहा- मुझे और मेरी मशीनगन को यहीं छोड़ दो, हाथ कट चुके थे, पेट औऱ जांघ में गोली लगी थी, मेजर ने पैर से मशीनगन का ट्रिगर दबाया और दुश्मन का आंतिम दम तक सामना किया, । लड़ते- लड़ते प्राण न्योछावर कर दिए लेकिन उस पोस्ट पर दिनभर चीनी सेना को इंच भर आगे नहीं बढ़ने दिया. अगले दिन जब पोस्ट पर और जवाब पहुचे तब बहुत से जवानो की ऊँगली अभी भी बन्दुक के ट्रिगर पर रखी थी।
इस अदम्य साहस और वीरता के लिए मेजर शैतान सिंह को परमवीर चक्र मिला, ये वही मेजर शैतानसिंह राणा थे, जिनको लेकर कवि प्रदीप ने अमर गीत लिखा और लता मंगेशकर ने गाया…
“थी खून से लथपथ काया फिर भी बंदूक उठा ली…
दस-दस को एक ने मारा, फिर अपनी जान गंवा दी…..।।
सादर नमन करतें है भारत माँ के वीर अमर बलिदानी को ।
(Copy Nageshwar Singh Baghel )