मुनव्वर राना भाई तुम कहते थे कि रायबरेली की नालियो से होकर दिल्ली की राजनीती का दरवाजा खुलता है l तो मुनव्वर राणा जी इसका मतलब इंदिरा जी,सोनिया गांधी,राहुल गांधी नाली के कीड़े है ? और आप उनकी चाटुकारी करने वाले भांड कवि !! तो मुनव्वर राना भाई अब जान लो कि ये जयशंकर प्रसाद, दिनकर, शुभद्रा चौहान , प्रेमचंद का महान देश अब नए यूग में प्रदार्पन कर गया है , यंहा अब चाटुकारिता के लिए कोई सम्मान नहीं दिया जाता बल्कि काले झंडे दिखाए जाते है !secularism की बीमारी है मुनव्वर राणा तुम को, इसका कोई इलाज नहीं । जब तक मोदी रहेगा, तुम जैसे हजारो चाटुकारों को एसी घुटन भरी परेशानी रहेगी l सुधर जावो, चाटुकारिता छोड़ , राष्ट्रवाद की गंगा में नहा लो !
मुनव्वर राना जी ! आपको सम्मान लौटाने की जरूरत नहीं थी क्योंकि आपका सम्मान तो देश की नज़र में उसी दिन क्षतिग्रस्त हो गया था जब एक मुशायरे में आपने बड़े दम्भ से कहा था कि पाकिस्तान से आपकी बहन के भारत आने के लिए वीज़ा का प्रॉब्लम सॉल्व करने के लिए रात को 9 बजे यहां कार्यालय खुलवाया गया था ।
आप एक विद्या में पारंगत तो हुए लेकिन "कलाकार कम चाटुकार" बनकर आपने दिखा दिया कि 'बिकाऊ कला' राजनीति के चरणों में कैसे लोट जाती है ...जिस मातृभूमि को शहीद भगत सिंह ने जननी से ऊँचा दर्जा दिया उसे आपने (माँ पर बेहतरीन पंक्तियाँ लिखने वाले ने) ये कहके दुत्कारा कि इस देश की सत्ता रायबरेली की नालियों से होकर गुजरती थी ?...........................Sanjeev Mishra
Kuldeep Mehta वो कह रहे हैं की देश में धार्मिक असहिष्णुता बढ़ रही है इसलिए वो अपने पुरस्कार लौटा रहे हैं।ऐ नेहरू परिवार के दरबारी लेखकों मेरे सवालों का जवाब दो-
��तुम तब कहाँ थे जब घाटी में कश्मीरी पंडितों के खून की नदियां बही थीं।
��तुम तब कहाँ थे जब केरल में जबरन धर्मान्तरण की वजह से हिन्दू अल्पसंख्यक हो गए।
�� तुम तब कहाँ थे जब 84 में दिल्ली की सड़कों पर सिक्खों की खून की नदियां बह रही थीं।
��तुम तब कहाँ थे जब असम में हिंदुओं को जलाया जा रहा था।


