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An Open Warning to Arvind Kajriwal to Amend himself to Civility





मैंने (संजय सिन्हा, दिल्ली का एक आम आदमी)कई बार ऑटो में चलने की भी कोशिश की है। लेकिन दिल्ली में ऑटो पर चलना जंग जीतने से कम बड़ा काम नहीं है।परसों ही मेरी पत्नी ने ऑटो वाले से पूछा कि भैया, अक्षर धाम मेट्रो स्टेशन चलोगे, तो उसने कहा कि हां, डेढ़ सौ रूपए लगेंगे। अब बताइए कि पांच किलोमीटर के लिए डेढ़ सौ रूपए कौन देगा? उसने उसे धमकाने की कोशिश की कि पुलिस में शिकायत कर दूंगी, तो ऑटो वाला अपना फोन निकाल कर उसे देने लगा कि लीजिए कर लीजिए। उसने उल्टा धमकाया कि दिल्ली में केजरीवाल की सरकार उनकी बदौलत बनी है। कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

आदरणीय केजरीवाल जी, आप हमारी मुश्किल को समझें।मैं मानता हूं कि दिल्ली में प्रदूषण बहुत बढ़ गया है। सुना है आप खुद आईआईटी में पढ़े हैं। सोचिए कि क्या सचमुच दिल्ली की सबसे बड़ी समस्या यही है? वैसे आप जानते हैं कि-
1. दिल्ली में प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह राजस्थान से आने वाली हवाएं हैं। उसे आप रोक नहीं सकते।
2. दिल्ली के आसपास के राज्यों में किसान जो भूसा जलाते हैं, उससे भी प्रदूषण होता है। उसे रोकने पर किसानों वोट कटने का ख़तरा है।
3. दिल्ली में जो पावर प्लांट है, उससे भी प्रदूषण होता है। इसे बंद करना फिलहाल नामुमकिन है।
4. यहां ट्रकों और ऑटो से प्रदूषण फैलता है। आप इन्हें रोकना चाहेंगे, तो आपको वोट का नुकसान होगा।
5. यहां पेट्रोल पंप पर बिकने वाले डीजल में मिट्टी तेल की मिलावट होती है। पर आप उन्हें कैसे रोकेंगे? प्रदूषण की बहुत बड़ी वजह ये मिलावट भी है।
6. आप हर गाड़ी से फिटनेस प्रमाण प्रत्र लेते हैं। इसका मतलब कि जिनके पास ये प्रमाण पत्र होता है, उनकी गाड़ियों से प्रदूषण नहीं होता, फिर आप क्यों उन गाड़ियों को सड़क पर चलने से रोक रहे हैं?

खैर, आज मैं ज़्यादा लंबी कहानी नहीं सुनाना चाहता। सारी रात नहीं सो पाया हूं, इसलिए सिर में दर्द हो रहा है।पर आपसे कहना चाहता हूं कि मैंने जो कुछ लिखा है, उसका एक-एक अक्षर सत्य है। आप चाहें तो अपने साथी Manish Sisodia जी से मेरे बारे में पूछ लें। वो मेरे साथ ज़ी न्यूज़ में काम करते थे। जिन दिनों मैं रिपोर्टिंग करता था, वो डेस्क पर थे और बिजली की बदहाली के खिलाफ आंदोलन उन्होंने मेरे सामने ही शुरू किया था। वो सरकार से परेशान थे। सरकारी फैसलों और भ्रष्टाचार से परेशान थे। मैंने उनसे पूछा था कि आप कभी राजनीति में तो नहीं आएंगे न! उन्होंने कहा थी कि नहीं, राजनीति नहीं करनी। पर जब बात नहीं बनी, सरकार नहीं सुधरी, तो उन्होंने राजनीति में कदम रख दिया।आप भी ऐसा कुछ मत कीजिए कि किसी शांत, खुश मिजाज आदमी को राजनीति में घुसने का मन बनाना पड़ जाए।आप लोगों से कहते थे कि तुम बिजली का बिल मत दो। तुम कटे मीटर के कनेक्शन को खुद जोड़ लो। सरकार से मत डरो। मान लीजिए हम आपसे डरना छोड़ दें, अपनी कार लेकर आज दफ्तर के लिए निकल पड़ें, तो आपको कैसा लगेगा?

दूसरों के साथ वैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए, जो खुद के लिए पंसद न हो। और आखिरी बात, बहुत साल पहले किसी पत्रिका में पढ़ा था कि कानून उतने ही बनाने चाहिए जिनका पालन हो सके। ज्यादा कानून बनते हैं, तो उनके टूटने का खतरा बढ़ता है।बाकी तो आप समझदार हैं।आप वैकल्पिक व्यवस्था पहले पूरी कीजिए, फिर इस तरह की मुहिम चलाएं। आप साइकिल ट्रैक बनवा दीजिए, मैं दिल्ली में कार से चलना छोड़ दूंगा।
आपका
संजय सिन्हा (दिल्ली का एक आम आदमी)