राष्ट्रवाद की डोर थमा दिल्ली की गद्दी पर बैठाया चाय बेचने वाले देशभक्त मतवाले को ,पहली बार लगा भारत माता मुस्काई !

   

कमल और केसरिया वाली गरिमा हमको भाई थी, पहली बार लगा था,भारत माता भी मुस्काई थी,
राष्ट्रवाद की डोर थमा दी,देशभक्त मतवाले को, दिल्ली की गद्दी बैठाया,चाय बेचने वाले को,
सोचा था अब देश-धर्म की दशा सुधारी जायेगी, देश लूटने वालों की भी खाल उतारी जायेगी,
सोचा था गद्दारों को अब सबक सिखाया जाएगा, और तिरंगा काश्मीर की गली गली लहराएगा,
सोचा था अब एक नियम-कानून बनाया जाएगा, मज़हब से ऊपर भारत हो,पाठ पढ़ाया जायेगा,
सोचा था शोषित हिन्दू के भाग्य सँवारे जाएंगे, अवधपुरी में रामलला का मंदिर भव्य बनाएंगे,
लेकिन यह क्या?चित्र सभी विपरीत दिखाई देते हैं, भारत की बर्बादी वाले गीत सुनाई देते हैं,
भारत को गाली देने वाला खुलकर गुर्राता है, श्री नगरी में देशभक्त बेटों को पीटा जाता है,
गौ माता का भक्षण करने वाले हंसी उड़ाते हैं, भारत की जय बोल रहे जो,निर्मम लाठी खाते हैं,
लोग तुम्हारा छप्पन इंची सीना खूब चिढ़ाते हैं, "भक्त"हमें बतलाकर हम पर ताने मारे जाते हैं,
दो वर्षो में अडिग आस्था,आज लगा है खो दी जी, सबका साथ विकास सभी का,तुम्हे मुबारक मोदी जी,
अभी तलक संसद की गलियां,गद्दारों से गन्दी हैं, अभी तलक कालापानी में सावरकर जी बंदी हैं,
अभी तलक गीता घायल है,कीचड़ कीचड़ गंगा है, गणपति,होली,दीवाली पर,शांति प्रियों का दंगा है,
भारत को माँ नही समझिये,फर्जी फतवा आता है,आज तुम्हारी ख़ामोशी पर,रोती भारत माता है,
हैं मंज़ूर घास की रोटी,लेकिन यह अपमान नही, यह भारत राणा का है,बाबर का हिंदुस्तान नही,
आँखे खोलो,वक्त परख लो,राष्ट्रवाद की बात करो, या हमको सीरिया बना दो,या सब कुछ गुजरात करो,

----कवि गौरव चौहान