Narendra Bhartiya·

भगवान महावीर के परम शिष्य आचार्य कुन्दकुन्द देव ने "ग्रंथाधिराज अष्टपाहुड" जैन साधू के लिए बनाया था जो आज तक एक बार भी परिवर्तित नहीं हुआ ।2570 वर्ष पूर्व जैन साधू जो जीवन जीते थे, आज के आधुनिक चकाचौंध भरे युग में भी वैसा ही जीवन जी रहे हैं।
आपको कोई कहे कि ऐसा व्यक्ति ढूंढकर लाओ जो ज़िन्दगी भर बिजली का उपयोग न करता हो , वाहन में न बैठता हो , बैंक में जिसका खाता न हो , जिसके पास रहने के लिए घर न हो , गांव में खेत न हो , जो पैसा न कमाता हो , जो विवाह न करता हो , जिसका परिवार न हो , पैर में जुते न पहनता हो , जिसके पास 1 जोड़ी कपडे भी ना हो , जिसके पास राशन कार्ड, आधार कार्ड, वोटर कार्ड, पैन कार्ड, ड्राईविंग लाईसेंस आदि न हो , जिसे पासपोर्ट की जरुरत न हो , जिसे दर्जी, नाई, मोची, सुथार, लुहार, घांची, तेली, वणिक आदि लोगो की जरुरत न पड़े और फिर भी जो सदैव सुखी रहे , तो आपको कहीं दूर जाने की आवश्यकता नहीं, जैन साधू के रूप में ऐसे व्यक्ति आपके आस पास विचरण करते हुए नज़र आ जाएंगे ...!!!

