या दिल की सुनो दुनियावालों या मुझको अभी चुप रहने दो
मैं ग़म को खुशी कैसे कह दूँ जो कहते हैं उनको कहने दो
ये फूल चमन में कैसा खिला माली की नज़र में प्यार नहीं
हँसते हुए क्या-क्या देख लिया अब बहते हैं आँसू बहने दो
या दिल की सुनो...


जब मैं धारा 370 के कभी ना हटने की बात करता हूँ तो मेरे कई बहुत ही खासुलखास दोस्त चिड़ जाते हैं,
निश्चित रूप से मैं मोदी जी का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ और उनको बहुत दिलेर भी मानता हूँ लेकिन कश्मीर को लेकर मैं उनकी सीमाओं से और लोगों की अपेक्षा अधिक जानकारी रखता हूँ, आपको एक सच्ची घटना बताता हूँ शायद बहुत से लोगों के अवचेतन से यह घटना साफ़ भी हो गई होगी लेकिन मेरे दिमाग से कभी नहीं हो सकती,
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कश्मीर के अनंतनाग जिले में कश्मीरी सिक्खों का एक कस्बा है चिट्टीसिंहपुरा अतीत में इसे आप कश्मीर का पंजाब भी कह सकते थे, बेहद लम्बे तड़ंगे हरी नीली आँखों वाले सिक्ख एकदम अंग्रेजो की माफिक गोरे चिट्टे जैसे कोई यूरोपीय नस्ल की वंशावली से हो, पंजाब के सिक्खों से इतर ये जबर अहिंसावादी और मुस्लिमों से बेहद करीबी सम्बन्ध रखते थे, पंजाब के सिक्खों से बिलकुल अलग बात यह थी कि हथियारों से इनका दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं था, अचानक यहाँ एक रात शांतिदूतों ने सशस्त्र हमला करके पैंतीस सिक्खों को मौत के घाट उतार दिया,
मेरे पिताजी की यूनिट भी अन्य सेना यूनिटों की तरह गुस्से से पागल हो गई और एकदिन इन्ही सिक्खों के कसबे चिट्टीसिंहपुरा की इस घटना के पांच सम्बंधित कश्मीरी शांतिदूतों को घेर कर उड़ा दिया क्योंकि ये पांच शांतिदूत ही उन आतंकवादियों को इस कस्बे में कश्मीरी सिक्खों को हलाक करने के लिए लेकर आये थे, जिनके साथ कभी एक ही थाली में बैठकर उन सिक्खों ने मुर्ग-मुसल्लम उड़ाया था, :सोच सकते हैं उसके बाद क्या हुआ होगा........?.......अजीत भोंसले
निश्चित रूप से मैं मोदी जी का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ और उनको बहुत दिलेर भी मानता हूँ लेकिन कश्मीर को लेकर मैं उनकी सीमाओं से और लोगों की अपेक्षा अधिक जानकारी रखता हूँ, आपको एक सच्ची घटना बताता हूँ शायद बहुत से लोगों के अवचेतन से यह घटना साफ़ भी हो गई होगी लेकिन मेरे दिमाग से कभी नहीं हो सकती,
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कश्मीर के अनंतनाग जिले में कश्मीरी सिक्खों का एक कस्बा है चिट्टीसिंहपुरा अतीत में इसे आप कश्मीर का पंजाब भी कह सकते थे, बेहद लम्बे तड़ंगे हरी नीली आँखों वाले सिक्ख एकदम अंग्रेजो की माफिक गोरे चिट्टे जैसे कोई यूरोपीय नस्ल की वंशावली से हो, पंजाब के सिक्खों से इतर ये जबर अहिंसावादी और मुस्लिमों से बेहद करीबी सम्बन्ध रखते थे, पंजाब के सिक्खों से बिलकुल अलग बात यह थी कि हथियारों से इनका दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं था, अचानक यहाँ एक रात शांतिदूतों ने सशस्त्र हमला करके पैंतीस सिक्खों को मौत के घाट उतार दिया,
मेरे पिताजी की यूनिट भी अन्य सेना यूनिटों की तरह गुस्से से पागल हो गई और एकदिन इन्ही सिक्खों के कसबे चिट्टीसिंहपुरा की इस घटना के पांच सम्बंधित कश्मीरी शांतिदूतों को घेर कर उड़ा दिया क्योंकि ये पांच शांतिदूत ही उन आतंकवादियों को इस कस्बे में कश्मीरी सिक्खों को हलाक करने के लिए लेकर आये थे, जिनके साथ कभी एक ही थाली में बैठकर उन सिक्खों ने मुर्ग-मुसल्लम उड़ाया था, :सोच सकते हैं उसके बाद क्या हुआ होगा........?.......अजीत भोंसले
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उन पांच शांतिदूतों को उड़ाने के बाद भारत सहित दुनिया भर के सिकयूलायरों ने ऐसा भयानक नंगा नाच किया कि सेना भी सहम गई, उन पांच मुखबिरों को उड़ाने वाले जवानों पर सिविल कोर्ट और आर्मी कोर्ट में मुकदमा चला (परिणाम मेरी जानकारी में नहीं है) सिक्यूलायर उन पांच शांतिदूतों को बेहद निरीह और मासूम साबित करके ही माने,
जंहा पैंतीस सिक्खों के नर-संहार पर किसी नेता,पत्रकार एंकर की नींद नहीं खुली थी वहीँ इन पांच शांतिदूतों की याद में बी.बी.सी तक के पत्रकार बिलख बिलख कर रोने लगे और जंहा तक मेरी अपुष्ट जानकारी है उनका कोर्ट मार्शल कराकर ही माने, मैं जमीनी सच्चाई से बहुत गहरे तक वाकिफ हूँ धारा तीन सौ सत्तर खत्म करने के लिए भारतीय सेना को लाखों शांतिदूत लोगों की बलि लेनी होगी और आज नहीं तो कल वो लेगी भी, जिसके लिए सेना बरसों से इंतज़ार भी कर रही है, इसलिए सब कुछ मोदी जी ही करेंगे यह विचार मन से निकाल दो हाँ उन्हें सोशल मीडिया के जरिये पिन जरूर करते रहो,
धारा तीन सौ सत्तर खत्म होगी अवश्य होगी लेकिन उसमे ना लोकसभा और ना ही राज्य-सभा की कोई भूमिका होगी भूमिका होगी तो सिर्फ और सिर्फ भारतीय सेना की.
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मन की बात...........एक बात से बहुत हैरान होता हूँ,
कश्मीर से जब भी हिन्दुओं पर अत्याचार की बात होती है सिर्फ कश्मीरी पंडितों की चर्चा होती है,
जबकि डोगरे और कश्मीरी सिक्ख भी बहुत बड़ी संख्या में कश्मीर में रहते थे, और उन्होंने भी उतने ही कष्ट और अत्याचार झेले हैं जितने कश्मीरी पंडितों ने, उन्हें भी पलायन का बहुत पीड़ा देने वाला दर्द सहा है,
कश्मीरी सिक्ख पंजाब या अन्य प्रदेशों के सिक्खों की तुलना में बिल्कुल अलग दिखते थे, इनके कई गाँव थे,
मैंने कभी भी इनके पलायन या दुःख दर्द के बारे में जिक्र नहीं सुना ना जाने क्या कारण है, जबकि इनका भी बहुत बड़ी संख्या में कत्लेआम हुआ था उतने ही दर्द इन्होने झेले थे जितने कश्मीरी पंडितों ने,
