सवाल ये है कि मन्द विरोधियों को ये सब विकास दिखाई क्यों नही देता...?


नीचे दिख रही तश्वीरें अबूझमाड़ के स्थानीय निवासियों की है... अबूझमाड़, छतीसगढ़ के नारायणपुर जिले में 50000 वर्गकिलोमीटर में फैला एक वो इलाका जहाँ संरक्षित जनजातियाँ निवास करती है और जो भारत का अभिन्न अंग होने के बावजूद भारत के नक्शे में कहीँ नहीं है.... सरकार के पास इस इलाके की न तो कोई नापजोख है न नक्शा... आज़ादी के बाद न तो इस इलाके में राज्य सरकारें पहुँच पाई न ही केंद्र सरकारें... अबूझमाड़ एक ऐसा इलाका जहाँ किसी सरकार की नही माओवादियों की हुकूमत चलती है... कोई भी वाहन या व्यक्ति इस इलाके में बिना माओवादियों की इजाज़त के इस इलाके में प्रवेश नहीं कर सकता... इस इलाके के 237 गुमनाम गांवों में रहने वाले लोग विकास से कोसों दूर है... ये आज भी आदिम युग मे जी रहे है...Image may contain: 5 people, people sitting, people eating and outdoor
आज़ादी के बाद पहली बार राज्य और केंद्र सरकार की संयुक्त इच्छाशक्ति के चलते ड्रोन की सहायता से इस इलाके की जनगणना और भू गणना हो रही है... अब तक इस इलाके के 10 गाँवो का सर्वेक्षण पूरा हो चुका है और 5 गांवों के 169 परिवारों को भूमि के दस्तावेज सौंपे जा चुके है... इस सर्वे के पूरे होने के बाद ये इलाका आज़ादी के इतने सालों बाद अब भारत के नक्शे में दिखाई देगा... इससे पहले फरवरी 2016 में दिल्ली से अबूझमाड़ के गुदुम तक पहली बार ट्रेन चली थी... जनवरी 2017 में अबूझमाड़ के घने जंगलों में 140 किमी लम्बी रेलवे लाइन बिछाने की दो हज़ार करोड़ की परियोजना का सर्वे शुरू हो चुका है...

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40 साल तक संयुक्त मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार रही लेकिन इस इलाके में झांकने तक की जहमत नही उठाई गई... और तो और ट्रेंड 2011 में माओवादियों से निपटने के लिए बनाई गई स्थानीय युवाओं की कोया कमांडो टीम जिस पर स्थानीय कांग्रेस नेताओं की सरपरस्ती में लूटपाट के आरोप लगते थे, अब वो माओवादियों के सफाये में सरकार की मदद कर रही है...
ये सब विकास नही है क्या...?
सवाल ये है कि मन्द विरोधियों को ये सब विकास दिखाई क्यों नही देता...?

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जवाब ये है कि जिनके लिए 10 जनपथ, अमेठी,रायबरेली, लखनऊ और इटावा ही सम्पूर्ण भारत है उन्हें ये विकास कैसे दिखेगा... ?
जब विकास देखा ही नही इन्होंने कभी तो विकास को पहचानने कैसे...?
इनको विकास दिखता है तब जब
अखिलेश यादव सहारा शहर में बंगला खरीद लेते है, यही इनका विकास है, ये इसी में खुश हो जाते है... ये खुश होते है मायावती की विशालकाय मूर्तियाँ देखकर... इनके लिए विकास के मायने राहुल बाबा का इटली में मनाया गया जन्मदिन और सैफई का रंगारंग कार्यक्रम है... इनको विकास सिंगल पसली केजरीवाल के पॉपकॉर्न की तरह फूलते पेट मे नज़र आता है.... इनका विकास छुपा है मुशायरों में... ये तालियाँ बजा के खुशी से नाचते है जब पैदल चलने वाला इनकी पार्टी के नेता का बेटा 5 करोड़ की कार से चलने लगता है... यही केवल यही विकास है इनकी नज़र में...बीसियों ऐसे विकास कार्य है जो आज़ादी के बाद पहली बार हुए है पर मन्द विरोधियों को तो बस पेट्रोल पीना है...



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Zoya दद्दी का बेहतरीन खोज