शिव जी का अर्द्धनारीश्वर रूप शक्ति कहलाता है. यह ईश्वर की पराशक्ति है, प्रबल लौकिक ऊर्जा शक्ति।

शिव जी का अर्द्धनारीश्वर रूप शक्ति कहलाता है. यह ईश्वर की पराशक्ति है (प्रबल लौकिक ऊर्जा शक्ति)। पार्वती दुर्गा या काली आदि के नाम से पूजते हैं। इसे ही भारतीय योगदर्शन में कुण्डलिनी कहा गया है। यह दिव्य शक्ति मानव शरीर में मूलाधार में (रीढ की हड्डी का निचला हिस्सा) सुषुप्तावस्था में रहती है। 
यह रीढ की हड्डी के आखिरी निचले हिस्से के चारों ओर साढे तीन आँटे लगाकर कुण्डली मारे सोए हुए सांप की तरह सोई रहती है। इसीलिए यह कुण्डलिनी कहलाती है।
जब कुण्डलिनी जाग्रत होती है तो यह सहस्त्रार की तेवर वेग से जाना चाहती है।कुण्डलिनी जागरण ३ प्रकार से होती है :
१) पूर्वजन्मों के पुण्ये प्रताप जैसे साधना ध्यान मंत्र आदि के प्रभाव से आनायास ही , कुण्डलिनी जागरण होने लग जाती है , थोड़े से ध्यान से ही यह साधना फलीभूत होती जाती है !
२) संत समान जीवन में सदगुनो को अपनाकर हरी भजन करते हुए ध्यान आदि लगाना , एवं छल, कपट, मोह,अहंकार,लोभ,अस्त्य,ईर्ष्या आदि का मन वचन कर्म से त्याग कर देना , ऐसे व्यक्ति को भी कुण्डलिनी जागरण में शीघ्र सफलता मिलती है ।
३) गुरु कृपा द्वारा भी सहज ही कुण्डलिनी जागरण होता है।किन्तु वह सद्गुरु होने चाहिए, क्युकी सद्गुरु का कुण्डलिनी पर पूर्ण नियंत्रण होता है, वे ही उसके वेग को अनुशासित एवं नियंत्रित करते हैं। गुरुकृपा में शक्तिपात दीक्षा से कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होकर ६ चक्रों का भेदन करती हुई सहस्त्रार तक पहुँचती है।
जय श्रीहरि : नमोः नारायणा !!!..............Ragini's Photo