India Honest is deeply worried on the status of governance in Delhi, under the communally mad Kejriwal. It is terrifying how some people resorts to violence when the Traffic Police is doing their job. The police men are openly beaten up and demoralised. The question people will ask very soon if Indian Laws are dual in nature in AAP's Delhi.
ये हाल पाकिस्तान के नहीं बल्कि भारत की राजधानी दिल्ली का है जहा पर शांतिप्रिय समुदाय के लोगो से लाइसेंस मांगने पर जिहादी बाप बेटे ने इलाके के जिहादी लोगो के साथ ट्रैफिक पुलिस को पीट दिया ये बात तो आप भी जानते है वो समुदाय कितना शांति प्रिय है ......एक साल पहले मथुरा में 2 सिपाहियों के रोकने पर 3 जिहादियो ने दोनों सिपाहियों को गोली से भून दिया था! कोर्इ व्यक्ति किसी दूसरे मजहब की परम्पराओं को यदि दिल से स्वीकार कर लेता है, तो उसे वह धर्म स्वीकार कर लेना चाहिये। अर्थात केजरीवाल को मुस्लिम टोपी पहनने के पहले इस्लाम भी कबूल कर लेना चाहिये, क्योंकि यदि आप पार्टी की टोपी लगाने से आप पार्टी का कार्यकर्ता कहलाता है, तो मुस्लिम टोपी पहनने से वह मुस्लिम ही कहलाता है। एक व्यक्ति दो पार्टियों का सदस्य नहीं बन सकता, उसी तरह एक ही व्यक्ति दो धार्मिक परम्पराओं का पालन नहीं कर सकता। यदि वह अपना धर्म नहीं छोड़ता है और दूसरे धर्म की परम्पराओं को स्वीकार कर लेता है, तो वह निश्चित रुप से ढोंगी है। अत: मुस्लिम टोपी पहन कर केजरीवाल ने इस्लाम कबूल नहीं किया, इसका मतलब है- उनकी न तो हिन्दू धर्म में आस्था है और न ही मुस्लिम धर्म में। वे केवल धार्मिक परम्पराओं को ऊपरी मन से स्वीकार कर अपनी सियासत चमकाना चाहते हैं..



दिल्ली ट्राफिक पुलिस को थोड़ा धर्य रखना चाहिये, कल जैसी पिटाई दुबारा ना हो इसलिये रमज़ान के पाक महिने में किसी शान्तिदूत का चलान नही करना चाहियें। क्या पता ये शान्तिदूत सोनिया,राहुल या केजरीवाल की इफ़्तार पार्टी में जा रहे हो !!
राजनीतिक दलों के प्रमुख इफ्तार पार्टियों में बड़ी-बड़ी मुस्लिम हस्तियों और सेकुलर राजनीतिक दलों के नेताओं को आमंत्रित करते हैं। इसी बहाने यह साबित करने की कोशिश की जाती है कि हम मुस्लिम समुदाय के सच्चे हमदर्द हैं और उनके मसीहा हैं। बहुधा भाजपा नेताओं को इन पार्टियों में आमंत्रित नहीं किया जाता। भाजपा देश की सबसे बड़ी पार्टी है और इस पार्टी के पक्ष में देश के सर्वाधिक मतदाता मतदान करते हैं, इसके बावजूद भी भाजपा नेताओं को अछूत ही माना जाता है। चाहे भाजपा को देश की जनता ने शासन करने का अधिकार दे दिया हों, पर इनकी नज़रों में वे अछूत ही रहेंगे। लोकसभा चुनावों में सेकुलरिजम का सिक्का खोटा साबित होने के बाद भी ये उसे फिर चलाने की जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं। शायद उन्हें इस बात का अहसास नहीं है कि एक समुदाय को रिझाने की जितनी अधिक कोशिश की जायेगी, उससे यदि दूसरा समुदाय रुष्ट हो गया, तो सभी सेकुलर राजनीतिक दलों को अपना अस्तित्व बचाना भी मुश्किल हो जायेगा।

केजरीवाल तो सेकुलर राजनीति के नये खिलाड़ी है। वे उन्हीं नेताओं का अनुशरण कर रहे हैं, जो भारत की राजनीति में वर्षों से नष्ट कर रहे हैं और इफ्तार पार्टियां उनकी मजहबी सियासत का शगल बन गर्इ है। यह भी सही है कि किसी भी सेकुलर पार्टी के नेता ने गरीब मुस्लिमों को इफ्तार पार्टी नहीं दी, जिसका सीधा मतलब है- इफ्तार पार्टियां सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम समुदाय के प्रति हमदर्दी दिखाने और उनका मसीहा बनने के लिए किया गया ढो़ग है, जो वोटो की सियासत के अलावा और कुछ नहीं हैं।

Manu Tripathi.....Manu's Photos · Manu's Timeline

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