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मोहन भागवत : सत्यं शिवम् सुंदरम करो, सबके प्रति सम दृष्टी रखते हुए स्वयं को ठीक करो दुनियां अपने आप ठीक हो जायेगी |

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सत्यं शिवम् सुंदरम करो | प्रेम से करो और सबके प्रति सम दृष्टी रखते हुए सुख और दुख मे समान रहो | स्वयं को ठीक करो दुनियां अपने आप ठीक हो जायेगी |

शुभमंगल फाउंडेशन (सूरत), गुजरात द्वारा आयोजित कार्यक्रम मे जैनाचार्य अभय देवसुरिश्वरजी महाराज साहेब ने संतगणों की उपस्थिति में पूजनीय सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी को स्वर्ण अक्षर लिखित श्रीमद् भगवद गीता भेंट की गई |
इस अवसर पर उपस्थित संतगण एवं समुदाय को संबोधित करते हुए मोहनजी ने कहा कि भगवद गीता आदि तात्विक ग्रंथो को प्रत्यक्ष आचरण मे लाने वाले संतो और उनका बताया हुआ उपदेश स्वयं आचरण मे लाना है | हम लोगो के लिए संतो की अखंड परम्परा है और आगे भी रहेगी | लेकिन लाभ हमको लेना है तो आचरण करना है | हमारे धर्म, संप्रदाय, संस्कृति और परम्परा ये सभी शाश्वत सत्य पर आधारित होने के कारण इनको कोई मिटा नहीं सकता | बात है उसका आचरण करने वाले हम लोगो की | हमारी सुरक्षा तब होती है जब हम उसका आचरण करते है |
गीता का पहला संदेश यह है कि भागना नहीं | अर्जुन को कृष्ण ने कहाँ तुम युद्ध करो | जीवन मे कैसी भी परिस्थिति हो हमारा काम है अडग रहना, अच्छाई पर अड़े रहना | दूसरी बात जो भी पंथ, संप्रदाय भारत से निकला हो वो यमो एवं नियमो के आधार पर ही चलता है | आचरण का मार्ग सबका समान है | दर्शन अलग-अलग है क्योकि देखने वाले की दृष्टी अलग-अलग है | दूसरी बात जो करो अच्छा करो, समय पर करो, व्यवस्थित करो, सत्यं शिवम् सुंदरम करो | प्रेम से करो और सबके प्रति सम दृष्टी रखते हुए सुख और दुख मे समान रहो | स्वयं को ठीक करो दुनियां अपने आप ठीक हो जायेगी |