भारत के लोकतंत्र की शुरुआत ही गलत हाथों से हुई, वर्ना न तो आज कश्मीर समस्या होती और न ही हिन्दू-मुस्लिम बिबाद !


डाॅक्टर राजेंद्रा प्रसाद बहुत ही विद्वान और मेधावी थे और सच्चे राष्ट्रभक्त थे. नेहरू की राजेंद्र प्रसाद से पटती नहीं थी. इनके आपस में मनमुटाव के किस्से काफी चर्चा में रहे थे. एक वाकया हिन्दू सिविल कोड का था जिसमें राजेन्द्र बाबू ने नेहरू की बात नहीं मानी थी. नेहरू राजेन्द्र बाबू के पैरों की धूल के बराबर भी नहीं थे लेकिन गाँधी जी को अपने जाल में फंसा कर प्रधानमंत्री बन गए. धीरे-धीरे इन लोगों की पोल खुल रही है और ऐसे लोगों को देश कभी भी माफ नहीं करेगा .

इस देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य नेहरू ही था ! एक अंग्रेज़ी मानसिकता वाला इंसान जो अपने आप को किसी अंग्रेज़ से कम नही समझता था ! नेहरू ने कुर्सी की खातिर देश को तोडा, प्रधानमंत्री बनाने की लिये गाँधी जी को ब्लॅकमेल किया ! मे नही समझता की नेहरू को आज की पीढी जबकि सारी हकीकत जान चुकी है नेहरू की, को अपना आदर्श मानेगी !


इस खानदान के करण ही भारत की यह दुर्दशा हुई है जातिवाद साम्प्रदायिकता आरक्षण यह सब इन्ही की दी हुई विरासत है---------------भारत के लोकतंत्र की शुरुआत ही गलत हाथों से हुई, अगर सही हाथों में हुई होती तो आज न कश्मीर समस्या होती और न ही हिन्दू-मुस्लिम बिबाद..............Kuldeep Mehta





Sudhir Kumar Munna जितने बुद्धिजीवी लोग यह अवार्ड लौताने वाला खेल खेल रहे हैं दरअसल इन्हें इनके योग्यता के आधार पर यह अवार्ड मिला ही नहीं था!अतः अपने जहाँपनाह का आदेश मानते हुए शिफ़ारिस से मिला सम्मान वापस समर्पित कर रहे हैं l

Dilip Singh ऐसे समय में जब देश हर क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अपनी साख काफी मजबूत कर रहा है ,तथाकथित बुद्धिजीवियों की ऐसी संवेदनहीनता दुर्भाग्यपूर्ण है । जो किसी भी तरह से जनमानस के प्रतिनिधि होने का अधिकार नहीं रखती , क्योंकि साहित्य देश, काल और परिस्थिति का दर्पण होता है इसके साधकों पर जनमानस की भावना की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है ।



Suresh Vidyarthi :  क्या इत्तफ़ाक़ है कि आज देश को एकता के सूत्र में पिरोने वाले लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म दिन है तो वहीँ दूसरी ओर अपने निजी स्वार्थ के लिए देश में आपातकाल लगाकर लोकतंत्र का गला घोंटने वाली कुख्यात औरत इंदिरा गांधी का मरण दिन भी है। देश के इतिहास में दोनों को याद रखा जायेगा। एक को राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए तो दूसरी को अपने स्वार्थ और देश के लोकतंत्र की हत्या के लिए।

इस देश के इतिहास में आखिर छत्रपति शिवाजी और औरंगजेब दोनों के नाम भी तो आते ही हैं ना। लेकिन दोनों के सन्दर्भ अलग अलग हैं। एक का नाम आता है देश के स्वाभिमान के लिए तो दूसरे का देशवासियों पर अत्याचार और लूट के लिए।

  


में हारा नहीं बिहार दिल्ली से , में तो हारा तब था जब ७,लाख पंडीतो को कश्मीर से उनके घरों से ना जाने क्या कया कुकँम करके निकाल दिया गया । ओर आज तुम ऐक बिहार जेसी छोटी हार से हार गऐ मेरे हिन्दु मित्रों । 
मोदी जी को आज ओर सपोटँँ की जर्ुर हे तुमहारी । ओर आपलोग एसेही तमासा देख्ते रहोगे ! एक दिन ये जंगलराज जैसे लोग दिल्ली को छोड़ो बद्रीनाथ केदार नाथ मे भि मस्जिद बना लेंगे जी ।कुछ करो या मरो। आज हक़र कोई वोट के लीऐ बोलीवुड के लीऐ नौटंकी करने के लीड टोपी जरुरुी है................Sam Patel



टीपू सुल्तान के आतंक में था कूर्ग जिला, ‘हिंदुओं का कराया था धर्मपरिवर्तन, हाथियों से कुचलवाया’ !

कर्नाटक सरकार द्वारा आज १० नवंबर को टीपू सुल्तान की जयंती के रूप में मनाने की घोषणा के बाद विरोध और तेज हो गया है। मैंगलोर के कूर्ग जिले के लोगों ने कर्नाटक सरकार के इस निर्णय पर क्रोध व्यक्त करने हुए कहा है कि, वे १० नवंबर को ‘काला दिवस’ के रूप में मनाएंगे। 
इससे पहले भी कर्इ हिन्दुत्वनिष्ठ दल व संगठनोंने टीपू सुल्तान की जयंती मनाने का विरोध किया हैं। वहीं, कनार्टक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने टीपू सुल्तान की जयंती के विरोध को बेबुनियाद बताते हुए वह मनाने का समर्थन किया है । वास्तविकता यह है कि, टीपू सुल्तान की जयंती मनाने के कर्नाटक सरकार के निर्णय से कूर्ग के लोगों को आघात पहुंचा है।