अलग अलग धर्मों के लिए "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" के अलग अलग मापदण्ड , पर असहिष्णुता का दोषी तो मोदी ही है !

लेखक कलबुर्गी की हत्या क्यों और कैसे फैली असहिष्णुता :

मोहम्मद अजहरुद्दीन जब भारत के बड़े क्रिकेटर थे,तब उन्होंने एक नामी जूते की कंपनी का विज्ञापन किया और उस विज्ञापन के अंत में वो जूते पर अपना आटोग्राफ या हस्ताक्षर देते थे।आटोग्राफ में वो जूते पर अपने नाम का पहला शब्द "मोहम्मद" लिखते थे..

ये विज्ञापन एक या दो दिन टीवी पर आया और अजहरुद्दीन समेत जूते की कंपनी के मालिक को जान से मारने की धमकिया मिलने लगी। कई मुसलमान संगठनो से इसका विरोध शुरू किया क्योंकि "मोहम्मद" शब्द को वो पूज्य मानते हैं। खैर जान बचाने के चक्कर में ये विज्ञापन अजहरुद्दीन और उस कंपनी दोनों ने वापस ले लिया.किसी संस्था को कोई आपत्ति नहीं हुई "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" आदि पर..


ज्यादातर को ये घटना भूल गयी होगी..एक लेखक था "कलबुर्गी", पिछले 30 साल से किताबो और सेमिनारों में हिन्दू देवी देवताओं पर अभद्र टिप्पड़ी करना उसका पेशा था। कांग्रेस ने उसके कृत्य से खुश होकर "साहित्य एकेडमी अवार्ड" से नवाजा था।

कलबुर्गी ऐसी विचारधारा का समर्थक था जो कहता था की "मैं हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियों के ऊपर पेशाब करता था यह देखने के लिए की वो खुद को बचाते हैं कि नही और उनमे कितनी शक्ति है?" इसका विरोध जब हिन्दू संगठन करते थे तो स्वयं को सभ्य समाज का प्रतिनिधि कहने वाले लेखक, मीडिया और कलाकार कहते थे कि ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है..??




कांग्रेस शासित कर्नाटक में एक दिन किसी व्यक्ति ने प्रतिक्रिया में कलबुर्गी की गोली मार के हत्या कर दी।संभव है रोज रोज मूर्ति पर पेशाब करने वाले बयान के समर्थन और हिन्दू विरोधी लेख से आहत हो गयी हो किसी की भावना, और कोई सनकी सबक सिखाने निकल पड़ा हो.. इस तरह के लोगों के कारन रोज़ सैकड़ों लोग मरते हैं इस देश में ! फिर चला उसके विरोध में केंद्र सरकार और साहित्य अकादमी के विरुद्ध दुष्प्रचार, जिसमे केंद्र सरकार के कुछ प्रसिधी के भूके नेताओं ने उलटे सीधे बयान देकर और हवा दी !

अब समाज को तय करना है की "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" की सीमा क्या हो?

क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हिन्दू धार्मिक भावना को आहत करने पर भी होगी?

क्या अलग अलग धर्मों के लिए "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" के अलग अलग मापदण्ड होंगे ?

क्या ये फ़िल्मकार और साहित्यकार पुरे समाज की भावना का प्रतिनिधित्व करते है ? 

ये पुरस्कार जो सरकार देती है वो क्या समाज के बड़े वर्ग हिन्दुवो के विचारो को मानती है ? 


      


जैसा की पिछले 6 दशक से कांग्रेसी वामपंथी और विदेशी मिशन चलाने वाले करते आ रहे हैं l यदि ऐसा रहा तो Narendra Modi हो या Manmohan Singh, जनता की प्रतिक्रिया तो होगी..उसको नियंत्रित करने का काम राज्य सरकार का है जो कर्णाटक में कांग्रेस की है, उसे कोई कुछ नहीं कह रहा, बस देश में असहिष्णुता बढ़ने का ढोल पीटा जा रहा है !




आज तक ईसाई ,मुस्लिम समुदाय प्रतिक्रिया देता रहा था अपने धार्मिक अपमान पर और बड़े बड़े दंगे और हत्याएं करते रहे हैं ।। आप चाहे तो हिंदुओं की प्रतिक्रिया को साम्प्रदायिक प्रतिक्रिया कहने को स्वतंत्र है, मगर ये मोदी के आने से शुरू नहीं हुआ, इसका प्रारम्भ तो वर्षो पहले हो चुका था, अब बस इसे वामपंथी और कांग्रेसी चाटुकार बढ़ावा दे रहे हैं ।...जय हिन्दू राष्ट्र.......Sanjay Dwivedy