कांग्रेस आजकल डरी-डरी सी है, इन चुनावों में हार तो राहुल गांधी की लुटिया डुबोने के लिए काफी है।

आगामी 4 अप्रैल से 19 मई तक पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं, और उसके बाद आएंगे वहां  के नतीजे। सच मायनों में कहा जाय तो ये नतीजें ही आगे की तस्वीर पेश करने वाले है। तस्वीर भारत की दो मुख्य राजनीतिक पार्टियों की। ये पांच राज्यों के चुनावी नतीजे ही बताएंगे कि इन दिनों में देश के मूड में क्या बदलाव आया है। देश की जनता का भरोसा किस तरफ गया है । 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद हालांकि कई जगहों पर समय-समय पर चुनाव हुए , लेकिन इन पांच राज्यों की अलग ही खासियत है। जी हां ये पांच राज्य दरअसल गैर हिंदी भाषी राज्य हैं। ये वो राज्य हैं जहां लोग हिंदी कम बोलते हैं।भाजपा और कांग्रेस दोनों की साख है दावं पर !
  

चुनाव में भाजपा की प्रतिष्ठा दावं पर है , वहीं कांग्रेस अपना खोया हुआ वजूद वापस पाना चाहती है। नतीजों पर गौर हो तो भाजपा को पिछले दिनों जहां दिल्ली और बिहार की जनता ने नहीं स्वीकारा तो वहीं कांग्रेस को कहीं कुछ ज्यादा नहीं मिला। भाजपा हरियाणा, महाराष्ट्र, जम्मू, झारखण्ड के चुनाव जीती ,और कांग्रेस को इन जगहों पर किस्मत ने धोखा दिया। कांग्रेस की किस्मत आखिरी बार 2013 में कर्नाटक में जागी थी, जहां उसे जीत मिली थी।

हालांकि अगर उम्मीदों की बात हो तो भाजपा को इस बार असम राज्य से बहुत उम्मीदें हैं। बाकि राज्यों में वो अपना कुनबा फैलाना चाहेगी। कांग्रेस के सामने केरल और असम में अपना गढ़ बचाने की चुनौती है। कुल मिलाकर इस बार दोनों पार्टियों की अग्नि परीक्षा है।
अगर इस बार भाजपा पांच राज्यों में अपना कुनबा फैलाती है तो इससे ये साफ हो जाएगा कि गैर हिंदी भाषी राज्यों में भी इस पार्टी ने अपनी पकड़ मजबूत की है। मोदी इन चुनावों में जीत से जहां अपनी पहचान राष्ट्रीय नेता के तौर पर और मजबूत करेंगे । पार्टी संगठन में अमित शाह के साथ और शक्तिशाली बनेंगे।

 

वहीं कांग्रेस की जीत पार्टी की छवि को सुधारने में कारगर साबित होगी। अगले साल यूपी ,गुजरात और पंजाब में चुनाव होने वाले हैं, अगर कांग्रेस यहां 5 में बाज़ी मरती है तो आगे के लिए उम्मीदें बढ़ जाएंगी। तो राहुल गांधी  का चेहरा इन चुनावों में जीत हासिल कर  युवा नेता के रूप में उभरेगा।
अगर नुकसान की बात हो तो कांग्रेस की हार तो उनकी लुटिया डुबोने के लिए काफी है। ऐसे ही कांग्रेस आजकल हारी-हारी सी है। इन चुनावों में हारकर वो और मायूस हो जायेगी। पार्टी का वजूद खतरे में पद जाएगा। 

बीजेपी के लिए हार पार्टी की छवि कम तो नहीं होगा। हा राजनीतिक आभामंडल में विरोध के बादल छा जाएंगे।पार्टी में विरोधियों के स्वर मुखर होंगे।ऐसे में अब इन्तेजार है इन चुनावी नतीजों के आने का। देखना होगा किस्मत इन पार्टियों के लिए आगे क्या लेकर आती है।