"अगर मनुष्य अपने विवेक से ही किसी भी संसाधन के प्रयोग के निर्णय द्वारा उसकी उपयोगिता व् महत्व सिद्ध करने की क्षमता रखता है.. तो विकास की ऐसी कोई भी प्रक्रिया जो मानवीय विवेक को विकसित करने पर केंद्रित न हो, निश्चित रूप से त्रुटिपूर्ण है ; केवल आर्थिक प्रगति को विकास मान लेना समझ की ऐसी भूल है जिसे समाज में व्याप्त भ्रस्टाचार का मूल कारन मान सकते हैं।
एक राष्ट्र के रूप में कोई भी समाज कितनी प्रगति कर सकता है इसका निर्धारण उस समाज द्वारा स्वीकृत व् मान्य व्यक्ति निर्माण की प्रक्रिया द्वारा होता है , और दुर्भाग्य से, आज हमारे समाज में प्रोफेशनल्स बनाने के ऐसे तो कई प्रावधान हैं पर व्यक्ति निर्माण की ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं; सब भाग्य के प्रयोगों पर निर्भर है।
यह हमारे वर्तमान के शिक्षा व्यवस्था के त्रुटियों का ही परिणाम है जो भावी पीढ़ी को जीवन के विषय - वस्तु की स्पष्टता नहीं, तभी, उनकी प्राथमिकताएं भ्रमित हैं ; सारी शिक्षा की व्यवस्था व्यक्ति के जीवन की सफलता के प्रयासों पर केंद्रित है और जीवन की सार्थकता जैसे महत्वपूर्ण ही न रही। परिणाम प्रत्यक्ष है, स्वयं की विशिष्टता से अनभिज्ञ हमारे सामने एक ऐसी पीढ़ी खड़ी है जो अपने महत्व के लिए तुलनात्मक दृष्टिकोण पर आश्रित है,तभी, जब विविधताओं को एक दुसरे के पूरक बनने की आवश्यकता थी सामाजिक जीवन की प्रतिस्पर्धाओं को व्यवहारिकता के नाम पर सही सिद्ध किया जा रहा है।
व्यक्ति का जन्म समय के संभावनाओं के रूप में होता है जिसे वह अपने वर्तमान में जीता है; भारत का अस्तित्व हमारे पहले से था और हमारे बाद तक रहेगा, जीवनकाल के रूप में हमारा समय सीमित है.... और इसलिए... यह हमें सोचना है की हम अपने जीवन के प्रयोग से समय के इतिहास में, अपने कर्मों से, अपने लिए कैसा प्रभाव छोड़ना चाहेंगे; यश - अपयश जीवन की आय के लिए दोनों ही विकल्प हैं और इसलिए जीवन के प्रयोग के विषय का निर्णय महत्वपूर्ण है।
आखिर राष्ट्र का कायाकल्प करना इतना भी कठिन नहीं, बस अगर पता हो की करना क्या है !वर्तमान की पीढ़ी को अनुशाषित और भविष्य की पीढ़ी को बेहतर ढंग से शिक्षित कर यह किया जा सकता है।
शिखर की चढ़ाई कभी सरल नहीं होती और इसलिए सामाजिक उत्थान और बेहतर भविष्य निर्माण की दृष्टि से कई कठोर निर्णय भी लेने पड़ेंगे जिनसे किसी भी सहूलयतों के लिए समझौता करना संभव नहीं होगा; ऐसे किसी भी प्रयास की सफलता के लिए सामाजिक विवेक का विकास निर्णायक होगा क्योंकि तभी सामाजिक विकास के क्रम में चढ़ाई के किसी स्तर को अपनी समझ से शिखर मानकर हम कुंठा का शिकार नहीं बनेंगे।
आवश्यकता ही प्रयास के माध्यम से परिवर्तन को जन्म देती है, ऐसे में, जीवन के व्यापक प्रभाव के लिए उसका समय की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील होना निर्णायक होगा क्योंकि तभी कोई भी प्रयास सार्थक होगा और परिणाम सफल।
परिस्थितियों से तो हम आज भी संघर्षरत हैं और एक बेहतर भविष्य की आकांक्षा में हम आज भी सतत प्रयत्नशील भी, पर फिर भी अगर स्थिति में कुछ विशेष सुधार नहीं हो पाया है तो क्यों न परिस्थितियों के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदलने का प्रयास करें ; क्या पता... कला के रचनात्मक प्रयोग से चुनौतियाँ ही अवसर में बदल जाए।अगर प्रयोग ही नए की सम्भावना को जन्म देती है तो मेरी समझ से राष्ट्र जीवन में विचारधारा के व्यावहारिक प्रयोग का यही समय है!"............................Mohan Bhagwat ji