क्या है लाभ के पद का मामला, जिससे गई 20 आप विधायकों की सदस्यता !!

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क्या है लाभ के पद का मामला, जिससे गई 20 आप विधायकों की सदस्यता : दिल्‍ली में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्‍व वाली आम आदमी पार्टी सरकार के 20 विधायकों को सदस्यता के अयोग्य ठहरा दिया गया है. चुनाव आयोग पहले ही सुनवाई पूरी कर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। 

क्या था मामला : आप के 21 विधायक दिल्ली सरकार में संसदीय सचिव बना दिए गए थे. विधायक होते हुए वो इस पद पर नहीं रह सकते थे क्योंकि ये लाभ का पद माना जाता है. इसी वजह से सदस्यता चली गई. विधायक जरनैल सिंह ने पंजाब विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए पहले ही दिल्ली विधानसभा की सदस्यता छोड़ दी थी। 

क्या कहता है संविधान : संविधान के अनुच्‍छेद 102(1)(A) और 191(1)(A) के अनुसार संसद या फिर विधानसभा का कोई सदस्य अगर लाभ के किसी पद पर होता है तो उसकी सदस्यता रद्द हो सकती है. यह लाभ का पद केंद्र और राज्य किसी भी सरकार का हो सकता है। १) - भारत के संविधान में इसे लेकर स्पष्ट व्याख्या है। २) - जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 9 (A) के तहत भी सांसदों और विधायकों को अन्य पद लेने से रोकने का प्रावधान है।


कब से कब तक चला ये मामला : आम आदमी पार्टी ने 13 मार्च 2015 को अपने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था. हाईकोर्ट ने आठ सितंबर 2016 को 21 आप विधायकों की संसदीय सचिवों के तौर पर नियुक्तियों को दरकिनार कर दिया था. अदालत ने पाया था कि इन विधायकों की नियुक्तियों का आदेश उप राज्यपाल की सहमति के बिना दिया गया था। 

वही 19 जून को प्रशांत पटेल ने राष्ट्रपति के पास इन सचिवों की सदस्यता रद्द करने के लिए आवेदन किया. राष्ट्रपति की ओर से 22 जून को यह शिकायत चुनाव आयोग में भेज दी गई। केंद्र ने भी जताई थी आपत्ति : केंद्र सरकार ने भी विधायकों को संसदीय सचिव बनाए जाने के फैसले का विरोध करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में आपत्ति जताई थी. केंद्र सरकार ने कहा था कि दिल्ली में सिर्फ एक संसदीय सचिव हो सकता है, जो मुख्यमंत्री के पास होगा. इन विधायकों को ये पद देने का कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है। 


जया बच्चन पर भी ठहराई गईं थी अयोग्य : 2006 में ही जया बच्चन पर भी आरोप लगा कि वह राज्यसभा सांसद होने के साथ-साथ यूपी फिल्म विकास निगम की चेयरमैन भी हैं। इसे 'लाभ का पद' माना गया और चुनाव आयोग्य ने जया बच्चन को अयोग्य ठहरा दिया. जया बच्चन ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. यहां भी उन्हें राहत नहीं मिली. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि अगर किसी सांसद या विधायक ने 'लाभ का पद' लिया है तो उसकी सदस्यता जाएगी चाहे उसने वेतन या दूसरे भत्ते लिए हों या नहीं।